अब द्वितीय कर्नाटक युद्ध (Second Carnatic War) को पूरी पृष्ठभूमि, घटनाक्रम, पात्रों, परिणामों और विश्लेषण के साथ विस्तृत रूप में समझते हैं — UPSC/State PCS के लिए उपयुक्त भाषा में:
📖 द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749–1754) – एक विस्तृत अध्ययन
🧱 1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
🔹 मुगल साम्राज्य का विघटन:
18वीं सदी के मध्य में मुगल साम्राज्य कमजोर हो चुका था।
✅दक्षिण भारत (दक्कन) में मुगल सूबेदार स्वतंत्र रूप से शासन करने लगे थे।
🔷कर्नाटक और हैदराबाद दो प्रमुख राज्य थे।
🔷यूरोपीय शक्तियों की प्रतिस्पर्धा:
फ्रांस और ब्रिटेन दोनों ही भारत में व्यापार से आगे बढ़कर राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे।
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746–1748) में फ्रांसीसी (डुप्ले) ने अस्थायी सफलता पाई थी, लेकिन ऐक्स-ला-शैपेल की संधि (Treaty of Aix-la-Chapelle) से सभी विजय उन्हें छोड़नी पड़ी।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध के karan
🎯 2. युद्ध के कारण:
✅ (a) हैदराबाद का उत्तराधिकार विवाद:
1748 में निज़ाम-उल-मुल्क (हैदराबाद का निज़ाम) की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष शुरू हुआ
दो दावेदार:
✅नासिर जंग (ब्रिटिश समर्थित)
✅मुजफ्फर जंग (फ्रांसीसी समर्थित)
🔷 (b) कर्नाटक का नवाब विवाद:
कर्नाटक का नवाब अनवरुद्दीन मारा गया।
अब दो दावेदार:
मुहम्मद अली (ब्रिटिश समर्थित, अनवरुद्दीन का बेटा)
चंदा साहिब (फ्रांसीसी समर्थित, मुजफ्फर जंग का ससुर)
👉 ब्रिटिश और फ्रांसीसी दोनों ने इन स्थानीय राजाओं को समर्थन देकर युद्ध को मोर्चे पर ला दिया।
⚔️ 3. युद्ध की प्रमुख घटनाएं:
(i) चंदा साहिब का वर्चस्व:
1749 में फ्रांसीसी और चंदा साहिब की संयुक्त सेना ने अनवरुद्दीन को मार गिराया (अम्बूर की लड़ाई)।
चंदा साहिब को कर्नाटक का नवाब घोषित किया गया।
ii) रॉबर्ट क्लाइव की एंट्री:
ब्रिटिशों ने चंदा साहिब और फ्रांसीसी को हटाने के लिए रॉबर्ट क्लाइव को भेजा।
1751 में अर्काट (Arcot) पर हमला कर चंदा साहिब का ध्यान त्रिचनापल्ली से हटाया।
👉 यह रणनीति सफल रही। क्लाइव को स्थानीय हिंदू और मुस्लिम आबादी से समर्थन मिला।
(iii) त्रिचनापल्ली की घेराबंदी (1752):
ब्रिटिश सेना ने फ्रांसीसी और चंदा साहिब की सेना को घेर लिया।
चंदा साहिब को बंदी बना लिया गया और बाद में मारा गया।
🧾 4. युद्ध का अंत और संधि:
📜 पांडिचेरी की संधि (Treaty of Pondicherry), 1754:
फ्रांसीसी और अंग्रेजों के बीच संधि हुई।
मुहम्मद अली को कर्नाटक का वैध नवाब मान लिया गया।
दोनों देशों ने भविष्य में स्थानीय उत्तराधिकार में हस्तक्षेप न करने का वादा किया (हालांकि निभाया नहीं गया)।
इससे ब्रिटिशों को राजनीतिक और सैन्य अनुभव मिला, जो उन्होंने प्लासी (1757) और बक्सर (1764) में उपयोग किया।
📚 7. UPSC/PCS के लिए महत्वपूर्ण तथ्य:
बिंदु विवरण
कालावधि 1749 – 1754
लड़ाई का क्षेत्र कर्नाटक, त्रिचनापल्ली, अर्काट
मुख्य कारण कर्नाटक और हैदराबाद में उत्तराधिकार विवाद
ब्रिटिश समर्थक मुहम्मद अली, नासिर जंग
फ्रांसीसी समर्थक चंदा साहिब, मुजफ्फर जंग
परिणाम ब्रिटिशों की विजय, मुहम्मद अली नवाब बने
संधि पांडिचेरी की संधि (1754)
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🧠 विश्लेषण (UPSC Answer Writing में उपयोगी):
द्वितीय कर्नाटक युद्ध में फ्रांसीसी रणनीति श्रेष्ठ थी लेकिन संसाधनों और नेतृत्व में वे अंग्रेजों से पीछे रह गए।
रॉबर्ट क्लाइव की रणनीति भारतीय राजनीति में अंग्रेजों के प्रवेश की नींव बनी।
यह युद्ध एक महत्वपूर्ण मोड़ था जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के उदय को गति दी।