उत्तर प्रदेश सरकार की नई जनसंख्या नीति एवं सम्बद्ध मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2021-2030 की अवधि के लिए एक ‘नई जनसंख्या नीति' की घोषणा की गयी है।
'उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन (कंट्रोल, स्टेबलाइज़ेशन एंड वेलफ़ेयर) बिल- 2021' में जनसंख्या नियंत्रण में मदद करने वालों को प्रोत्साहन देने का प्रावधान है।
आवश्यकता क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पारिस्थितिकी और आर्थिक संसाधनों की मौजूदगी सीमित है।
सभी नागरिकों को मानव-जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं, जैसे भोजन, साफ़ पानी, अच्छा घर, गुणवत्ता वाली शिक्षा, जीवन यापन के अवसर और घर में बिजली मिलनी चाहिए। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण करना जरूरी है ।
नई जनसंख्या नीति 2021-30 का लक्ष्य
नई नीति का लक्ष्य 2026 तक कुल प्रजनन दर को वर्तमान में प्रति हजार आबादी पर 2.7 से घटाकर 2.1 और वर्ष 2030 तक 1.7 करना है ।
आधुनिक गर्भनिरोधक प्रचलन दर को, वर्तमान में 31.7 से बढ़ाकर वर्ष 2026 तक 45 और वर्ष 2030 तक 52 करना है।
पुरुषों द्वारा उपयोग किए जाने वाले गर्भनिरोधक तरीकों को 10.8 से बढ़ाकर वर्ष 2026 तक 15.1 और वर्ष 2030 तक 16.4 करना है।
मातृ मृत्यु दर को 197 से घटाकर 150 से 98 तक और शिशु मृत्यु दर को 43 से घटाकर 32 से 22 तक एवं पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु दर को 47 से घटाकर 35 से 25 तक कम करना है।
नई जनसंख्या नीति 202cu1-30 के मुख्य बिन्दु
स्थानीय निकाय के चुनाव : मसौदे में इस बात की सिफ़ारिश की गई है कि 'दो बच्चों की नीति' का उल्लंघन करने वालों को स्थानीय निकाय के चुनाव में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं होगी। इसके अतिरिक्त, वो सरकारी नौकरियों के लिए योग्य नहीं होंगे और सरकारी सब्सिडी का फ़ायदा भी नहीं उठा पाएंगे।
सरकारी कर्मचारियों को लाभ : मसौदे के अनुसार, दो बच्चों के नियम का पालन करने वाले सरकारी कर्मचारियों को सेवाकाल के दौरान दो अतिरिक्त इनक्रीमेंट (वेतन वृद्धि) मिलेंगे। माँ या पिता बनने पर पूरे वेतन और भत्तों के साथ 12 महीने की छुट्टी मिलेगी। इसके अतिरिक्त, नेशनल पेंशन स्कीम के तहत नियोक्ता के अंशदान में तीन फ़ीसदी का इजाफ़ा होगा।
आर्थिक मदद : इस ड्राफ़्ट में कहा गया है कि अगर कोई दंपत्ति सिर्फ़ एक बच्चे की नीति अपनाकर नसबंदी करा लेते हैं तो सरकार उन्हें बेटे के लिए एक मुश्त 80,000 रुपये और बेटी के लिए 1,00,000 रुपये की आर्थिक मदद देगी।
पॉपुलेशन फ़ंड' का निर्माण : इस अधिनियम का पालन कराने के लिए 'पॉपुलेशन फ़ंड' बनाया जाएगा। इसके मुताबिक़, सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसूति केंद्र बनाये जाएंगे। परिवार नियोजन का प्रचार किया जाएगा और यह तय किया जाएगा कि पूरे राज्य में गर्भधारण करने, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण अनिवार्य रूप से हो। इसके अतिरिक्त, प्रस्तावित मसौदे में राज्य सरकार के कर्तव्यों का भी ज़िक्र किया गया है।
जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य : जनसंख्या स्थिरीकरण को लक्षित करते हुए मसौदे में कहा गया है कि राज्य विभिन्न समुदायों के बीच जनसंख्या का संतुलन बनाए रखने का प्रयास करेगा। इसके अतिरिक्त, उन समुदायों, संवर्गों और भौगोलिक क्षेत्रों में जागरूकता और व्यापक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिनकी प्रजनन दर अधिक है।
विधेयक से जुड़े मुद्दे और चिंताएं:
गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन के मसले पर सर्वाधिक प्रभाव आखिरकार महिलाओं पर पड़ता है, ऐसे में संभव है कि इस नीति के लागू होने से महिला नसबंदी में और वृद्धि हो सकती है।
भारत में कड़े जनसंख्या नियंत्रण उपायों से पुत्र की चाहत में असुरक्षित गर्भपात एवं भ्रूण हत्याओं जैसी प्रथाओं में वृद्धि हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में दो बच्चों की नीति से जुड़ी सुनवाई में केंद्र सरकार ने हलफ़नामा दायर किया था कि भारत में परिवार नियोजन के लिए किसी भी बलपूर्वक तरीक़े की ज़रूरत नहीं है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि सरकार एक ऐसी नीति बनाये जिसमें महिलाओं की निजता का सम्मान हो ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश राज्यों और कई शहरी क्षेत्रों में, कुल प्रजनन दर (टीएफआर) पहले ही प्रतिस्थापन स्तर (2.1) तक पहुंच गई है। सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में भी, टीएफआर एक दशक की अवधि में प्रभावशाली रूप से 1.1 अंक गिरकर 2.7 तक हो गयी है, वो भी किसी जनसंख्या कानून के बिना ।
जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में भारत के दक्षिणी राज्यों की सफलता इंगित करती है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान देने से जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है न कि दंडात्मक उपायों से। इसके विपरीत ऐसे क्षेत्र जहां उच्च गरीबी, कम आर्थिक विकास और कम शिक्षित महिलायेँ हैं, वहाँ प्रजनन दर अधिक है ।
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